Sakat-Katha
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2023 में कब है सकट चौथ
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जानें 2023 में कब है सकट चौथ (Sakat Chauth 2023), क्या है इसका महत्व व पूजा विधि और पढ़ें पौराणिक कथा |

हिंदू कैलेंडर में प्रत्येक महीने में दो चतुर्थी तिथियां होती हैं। कृष्ण पक्ष के दौरान या पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी को ‘सकट चौथ (Sakat Chauth)’ के रूप में जाना जाता है और अमावस्या के बाद या शुक्ल पक्ष के दौरान आने वाली चतुर्थी को ‘विनायक चतुर्थी’ या संकष्टी चतुर्थी के रूप में जाना जाता है।

वैसे तो संकष्टी चतुर्थी का व्रत हर महीने किया जाता है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण सकट चौथ (Sakat Chauth) माघ और पौष के महीने में आती है।

यदि सकट चौथ मंगलवार को पड़ती है तो इसे अंगारकी चतुर्थी कहा जाता है और इसे अत्यधिक शुभ माना जाता है। सकट चौथ व्रत ज्यादातर पश्चिमी और दक्षिणी भारत में विशेष रूप से महाराष्ट्र और तमिलनाडु में मनाया जाता है।

जानें 2023 में कब है सकट चौथ (Sakat Chauth 2023)?

सकट चौथ 2023  –  शुक्रवार, 10 जनवरी 2023

सकट चौथ 2023 का व्रत कैसे करें?

सकट चौथ (Sakat Chauth) पर भगवान गणेश के भक्त सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक उपवास रखते हैं। संकष्टी का अर्थ है संकट के समय में मुक्ति। भगवान गणेश, बुद्धि के सर्वोच्च स्वामी, सभी बाधाओं के निवारण के प्रतीक हैं। इसलिए यह माना जाता है कि इस व्रत को करने से सभी बाधाओं से छुटकारा मिल सकता है।

इस व्रत को बहुत सख्त माना जाता है। ज्यादातर लोग पूरे दिन बिना खाए व्रत करते हैं, और कुछ लोग केवल फल, जड़ें और सब्जी उत्पादों का सेवन करते हैं। सकट चौथ  पर मुख्य भारतीय आहार में साबूदाना खिचड़ी, आलू और मूंगफली शामिल हैं। रात में चांद दिखने के बाद श्रद्धालु उपवास तोड़ते हैं।

उत्तर भारत में माघ मास की सकट चौथ (Sakat Chauth) को संकट चौथ के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा भाद्रपद महीने के दौरान विनायक चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। गणेश चतुर्थी को दुनिया भर के हिंदू भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाते हैं।

सकट चौथ 2023 व्रत के लाभ

1. विघ्न, बाधाओं को दूर करता है।
2. जीवन में धन, समृद्धि और सफलता लाता है।
3. बुध ग्रह के अशुभ प्रभावों को दूर करता है।

सकट चौथ पौराणिक व्रत कथा – श्री महादेवजी पार्वती (Sakat Chauth Pauranik Vrat Katha – Shri Mahadev Parvati)

सकट चौथ व्रत कथा – साहूकार और साहूकारनी

सकट चौथ यानी संकष्ट चतुर्थी से संबंधित कई कथाएं प्रचलित हैं, जिसमें गणेश जी का अपने माता-पिता की परिक्रमा करने वाली कथा, नदी किनारे भगवान शिव और माता पार्वती की चौपड़ खेलने वाली कथा, कुम्हार का एक महिला के बच्चे को मिट्टी के बर्तनों के साथ आग में जलाने वाली कथा प्रमुख रूप से शामिल है|

आज आपको सकट चौथ पर तिलकुट से संबंधित गणेश जी की एक कथा के बारे में बताते हैं| एक समय की बात है. एक नगर में एक साहूकार अपनी पत्नी के साथ रहता था. वे दोनों पूजा पाठ, दान आदि नहीं करते थे |

एक दिन साहूकारनी अपने पड़ोसन के घर गई. वहां वह पूजा कर रही थी. उस दिन सकट चौथ थी| साहूकारनी ने पड़ोसन ने सकट चौथ के बारे में पूछा, तो उसने बताया कि आज वह सकट चौथ का व्रत है |

इस वजह से गणेश जी की पूजा कर रही है. साहूकारनी ने उससे सकट चौथ व्रत के लाभ के बारे में जानना चाहा. तो पड़ोसन ने कहा कि गणेश जी की कृपा से व्यक्ति को पुत्र, धन-धान्य, सुहाग, सबकुछ प्राप्त होता है.

इस पर साहूकारनी ने कहा कि वह मां बनती है तो सवा सेर तिलकुट करेगी और सकट चौथ व्रत रखेगी. गणेश जी ने उसकी मनोकामना पूर्ण कर दी. वह गर्भवती हो गई. अब साहूकारनी की लालसा बढ़ गई|

उसने कहा कि उसे बेटा हुआ तो ढाई सेर तिलकुट करेगी. गणेश जी की कृपा से उसे पुत्र हुआ. तब उसने कहा कि यदि उसके बेटे का विवाह हो जाता है, तो वह सवा पांच सेर तिलकुट करेगी.

गणेश जी के आशीर्वाद से उसके लड़के का विवाह भी तय हो गया, लेकिन साहूकारनी ने कभी भी न सकट व्रत रखा और न ही तिलकुट किया. साहूकारनी के इस आचरण पर गणेश जी ने उसे सबक सिखाने की सोची|

जब उसके लड़के का विवाह हो रहा था, तब गणेश जी ने अपनी माया से उसे पीपल के पेड़ पर बैठा दिया. अब सभी लोग वर को खोजने लगे. वर न मिलने से विवाह नहीं हुआ.

एक दिन साहूकारनी की होने वाली बहू सहेलियों संग दूर्वा लाने जंगल गई थी. उसी समय पीपल के पेड़ पर बैठे साहूकारनी के बेटे ने आवाज लगाई ‘ओ मेरी अर्धब्याही’. यह सुनकर सभी युवतियां डर गईं और भागकर घर आ गईं|

उस युवती ने सारी घटना मां को बताई. तब वे सब उसे पेड़ के पास पहुंचे. युवती की मां ने देखा कि उस पर तो उसका होने वाला दामाद बैठा है.

उसने यहां बैठने का कारण पूछा, तो उसने अपनी मां की गलती बताई. उसने तिलकुट करने और सकट व्रत रखने का वचन दिया था लेकिन उसे पूरा नहीं किया. सकट देव नाराज हैं. उन्होंने ही इस स्थान पर उसे बैठा दिया है|

यह बात सुनकर उस युवती की मां साहूकारनी के पास गई और उसे सारी बात बताई. तब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ|

तब उसने कहा कि हे सकट महाराज! उसका बेटा घर आ जाएगा तो ढाई मन का तिलकुट करेगी. गणेश जी ने उसे फिर एक मौका दिया. लड़का घर आ गया और उसका विवाह पूर्ण हुआ. उसके बाद साहूकारनी ने ढाई मन का तिलकुट किया और सकट व्रत रखा |

उसने कहा कि हे सकट देव! आपकी महिमा समझ गई हूं, आपकी ​कृपा से ही उसकी संतान सुरक्षित है. अब मैं सदैव तिलकुट करूंगी और सकट चौथ का व्रत रहूंगी. इसके बाद से उस नगर में सकट चौथ का व्रत और तिलकुट धूमधाम से होने लगा.

 

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