Shri Rani Sati Dadi Arti श्री राणी सती माता आरती in English and Hindi
Shri Rani Sati Dadi Arti श्री राणी सती माता आरती in English and Hindi
श्री राणी सती दादी (Shri Rani Sati Dadi Ji) चालीसा
श्री राणी सती दादी (Shri Rani Sati Dadi Ji) चालीसा

श्री राणी सती दादी (Shri Rani Sati Dadi Ji) चालीसा

रानी सती मंदिर (राणी सती दादी मंदिर) भारत के राजस्थान राज्य में झुंझुनू जिले के झुंझुनू में स्थित एक मंदिर है। यह भारत का सबसे बड़ा मंदिर है जो एक राजस्थानी महिला रानी सती को समर्पित है, जो 13 वीं और 17 वीं शताब्दी के बीच कुछ समय तक रहती थी और अपने पति की मृत्यु पर सती (आत्मदाह) किया था।

राजस्थान और अन्य जगहों पर विभिन्न मंदिर उनकी पूजा और उनके कृत्य को मनाने के लिए समर्पित हैं। रानी सती को नारायणी देवी भी कहा जाता है और उन्हें दादीजी (दादी) के रूप में जाना जाता है।

राणी सती दादी जी मंदिर उत्सव और पालन

रानी सती मंदिर झुंझुनू में आरती
इस मंदिर में प्रतिदिन सैकड़ों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर में दिन में दो बार एक विस्तृत आरती की जाती है। ये हैं:

मंगला आरती: सुबह जल्दी की जाती है, जब मंदिर खोला जाता है।
संध्या आरती : शाम को सूर्यास्त के समय की जाती है।

भाद्र अमावस्या के अवसर पर एक विशेष पूजन उत्सव आयोजित किया जाता है: हिंदू कैलेंडर में भाद्र महीने के अंधेरे आधे का 15 वां दिन मंदिर के लिए विशेष महत्व रखता है।

॥ दोहा ॥
श्री गुरु पद पंकज नमन,दुषित भाव सुधार,
राणी सती सू विमल यश,बरणौ मति अनुसार,
काम क्रोध मद लोभ मै,भरम रह्यो संसार,
शरण गहि करूणामई,सुख सम्पति संसार॥

॥ चौपाई ॥
नमो नमो श्री सती भवानी।जग विख्यात सभी मन मानी ॥

नमो नमो संकट कू हरनी।मनवांछित पूरण सब करनी ॥

नमो नमो जय जय जगदंबा।भक्तन काज न होय विलंबा ॥

नमो नमो जय जय जगतारिणी।सेवक जन के काज सुधारिणी ॥4

दिव्य रूप सिर चूनर सोहे ।जगमगात कुन्डल मन मोहे ॥

मांग सिंदूर सुकाजर टीकी ।गजमुक्ता नथ सुंदर नीकी ॥

गल वैजंती माल विराजे ।सोलहूं साज बदन पे साजे ॥

धन्य भाग गुरसामलजी को ।महम डोकवा जन्म सती को ॥8

तनधनदास पति वर पाये ।आनंद मंगल होत सवाये ॥

जालीराम पुत्र वधु होके ।वंश पवित्र किया कुल दोके ॥

पति देव रण मॉय जुझारे ।सति रूप हो शत्रु संहारे ॥

पति संग ले सद् गती पाई ।सुर मन हर्ष सुमन बरसाई ॥12

धन्य भाग उस राणा जी को ।सुफल हुवा कर दरस सती का ॥

विक्रम तेरह सौ बावन कूं ।मंगसिर बदी नौमी मंगल कूं ॥

नगर झून्झूनू प्रगटी माता ।जग विख्यात सुमंगल दाता ॥

दूर देश के यात्री आवै ।धुप दिप नैवैध्य चढावे ॥16

उछाङ उछाङते है आनंद से ।पूजा तन मन धन श्रीफल से ॥

जात जङूला रात जगावे ।बांसल गोत्री सभी मनावे ॥

पूजन पाठ पठन द्विज करते ।वेद ध्वनि मुख से उच्चरते ॥

नाना भाँति भाँति पकवाना ।विप्र जनो को न्यूत जिमाना ॥20

श्रद्धा भक्ति सहित हरसाते ।सेवक मनवांछित फल पाते ॥

जय जय कार करे नर नारी ।श्री राणी सतीजी की बलिहारी ॥

द्वार कोट नित नौबत बाजे ।होत सिंगार साज अति साजे ॥

रत्न सिंघासन झलके नीको ।पलपल छिनछिन ध्यान सती को ॥24

भाद्र कृष्ण मावस दिन लीला ।भरता मेला रंग रंगीला ॥

भक्त सूजन की सकल भीङ है ।दरशन के हित नही छीङ है ॥

अटल भुवन मे ज्योति तिहारी ।तेज पूंज जग मग उजियारी ॥

आदि शक्ति मे मिली ज्योति है ।देश देश मे भवन भौति है ॥28

नाना विधी से पूजा करते ।निश दिन ध्यान तिहारो धरते ॥

कष्ट निवारिणी दुख: नासिनी ।करूणामयी झुन्झुनू वासिनी ॥

प्रथम सती नारायणी नामा ।द्वादश और हुई इस धामा ॥

तिहूं लोक मे कीरति छाई ।राणी सतीजी की फिरी दुहाई ॥32

सुबह शाम आरती उतारे ।नौबत घंटा ध्वनि टंकारे ॥

राग छत्तीसों बाजा बाजे ।तेरहु मंड सुन्दर अति साजे ॥

त्राहि त्राहि मै शरण आपकी ।पुरी मन की आस दास की ॥

मुझको एक भरोसो तेरो ।आन सुधारो मैया कारज मेरो ॥36

पूजा जप तप नेम न जानू ।निर्मल महिमा नित्य बखानू ॥

भक्तन की आपत्ति हर लिनी ।पुत्र पौत्र सम्पत्ति वर दीनी ॥ 40

पढे चालीसा जो शतबारा ।होय सिद्ध मन माहि विचारा ॥

टिबरिया ली शरण तिहारी।क्षमा करो सब चूक हमारी ॥

॥ दोहा ॥
दुख आपद विपदा हरण,जन जीवन आधार ।
बिगङी बात सुधारियो,सब अपराध बिसार ॥
॥ मात श्री राणी सतीजी की जय ॥

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