क्या है प्रदोष व्रत और क्यों किया जाता है
क्या है प्रदोष व्रत और क्यों किया जाता है

क्या है प्रदोष व्रत और क्यों किया जाता है

प्रदोष माह में दो बार यानी शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष की बारस अथवा तेरस को आता है। प्रदोष का व्रत एवं उपवास भगवान सदाशिव को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। प्रदोष काल में स्नान करके मौन रहना चाहिए, क्योंकि शिवकर्म सदैव मौन रहकर ही पूर्णता को प्राप्त करता है। इसमें भगवान सदाशिव का पंचामृतों से संध्या के समय अभिषेक किया जाता है।

भगवान शिव को प्रसन्न् करने के लिए किए जाने वाले समस्त व्रतों में प्रदोष व्रत अपेक्षाकृत जल्दी शुभ फल प्रदान करने वाला कहा गया है। यह व्रत हिंदू धर्म के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रदोष प्रत्येक माह में दो बार द्वादशी या त्रयोदशी तिथि में आता है। शास्त्रों में इस व्रत की महिमा बताते हुए कहा गया है कि मृत्यु तुल्य कष्ट भोग रहा व्यक्ति भी यदि प्रदोष व्रत करे तो भगवान शिव उसे अभयदान देते हैं। वर्षभर के प्रदोष व्रत करने का संकल्प लेने वाले व्यक्ति को सोम प्रदोष से ही अपने व्रत का प्रारंभ करना चाहिए। प्रदोष व्रत सप्ताह के किसी भी दिन आ सकता है लेकिन सोमवार को आने वाले प्रदोष की महिमा अलग ही है। कहा जाता है कि इसी दिन भगवान शिव ने अपने मस्तक पर चंद्र धारण किया था।

प्रदोष व्रत की कहानी

क्या है प्रदोष व्रत और क्यों किया जाता है
क्या है प्रदोष व्रत और क्यों किया जाता है

 

प्रदोष व्रत के संबंध में पौराणिक कथाओं के अनुसार चंद्र का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं के साथ हुआ था। ये 27 कन्याएं आकाशमंडल के 27 नक्षत्र हैं। इनमें रोहिणी सबसे खूबसूरत थीं। इसलिए चंद्र भी उससे अधिक स्नेह रखते थे। चंद्र का रोहिणी के प्रति प्रेम देखकर शेष कन्याएं दुखी होती थी और उन्होंने अपने पिता दक्ष से सारी बात कह डाली। दक्ष स्वभाव से ही क्रोधी थे। उन्होंने अपनी अन्य कन्याओं के साथ हो रहे भेदभाव के कारण क्रोध में आकर चंद्र को श्राप दिया कि तुम क्षय रोग से ग्रस्त हो जाओगे।नारदजी ने उन्हें मृत्युंजय भगवान आशुतोष की आराधना करने को कहा, तत्पश्चात दोनों ने भगवान आशुतोष की आराधना की।

चंद्र अंतिम सांसें गिन रहे थे (चंद्र की अंतिम एकधारी) कि भगवान शंकर ने प्रदोषकाल में चंद्र को पुनर्जीवन का वरदान देकर उसे अपने मस्तक पर धारण कर लिया अर्थात चंद्र मृत्युतुल्य होते हुए भी मृत्यु को प्राप्त नहीं हुए। पुन: धीरे-धीरे चंद्र स्वस्थ होने लगे और पूर्णमासी पर पूर्ण चंद्र के रूप में प्रकट हुए।

प्रदोष व्रत महत्व

  • रविवार को आने वाले प्रदोष का व्रत करने से आयु में वृद्धि होती है। अच्छा स्वास्थ्य और मानसिक लाभ प्राप्त करने के लिए रवि प्रदोष करना चाहिए।
  • सोमवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को करने से आरोग्य प्राप्त होता है। लंबे समय से चल रहे रोग भी सोम प्रदोष के प्रभाव से समाप्त हो जाते हैं। साथ ही समस्त सुखों की प्राप्ति होती है।
  • मंगलवार के प्रदोष व्रत आए तो उसे करने से मृत्यु तुल्य कष्ट भोग रहा व्यक्ति भी शीघ्र स्वस्थ हो जाता है। इस दिन व्रत करने से शीघ्र कर्ज मुक्ति होती है।

आर्थिक संकटों से छुटकारा

  • बुधवार के दिन आने वाला प्रदोष व्रत करने से बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है। आर्थिक संकटों से छुटकारा मिलता है।
  • गुरुवार के दिन प्रदोष व्रत आए तो इसे करने वाले को शत्रुओं से मुक्ति मिलती है। परिवार और समाज में मान-सम्मान, प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
  • शुक्रवार के दिन आने वाला प्रदोष व्रत सुख सौभाग्य में वृद्धि करता है। इस व्रत को पति-पत्नी मिलकर करें तो दांपत्य जीवन खुशहाल होता है।
  • जिन दंपतियों को संतान प्राप्ति की कामना हो, वे शनिवार को आने वाले प्रदोष का व्रत करें। इससे शीघ्र उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।

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